51st Ascension Anniversary of Prajapita Brahma Baba Observed as World Peace Day
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Mount Abu, 18 Jan: The 51st Ascension Anniversary of Prajapita Brahma, the Founder of Brahma Kumaris is observed as ‘World Peace Day’ all over the world. It was on 18th January, 1969 that Prajapita Brahma left his mortal body. The World Headquarters of the Brahma Kumaris at Mount Abu witnessed a huge gathering from all over the world to honor Brahma Baba. Special tribute was paid to Brahma Baba in Pandav Bhawan at Tower of Peace, where thousands gathered including Dadis and Senior Rajayogis Brother and Sisters.
Rajyogini BK Dadi Janki, Chief of Brahma Kumaris, Rajyogini Dadi Ratanmohini ji, Joint Chief of Brahma Kumaris, Rajyogini Dadi Ishu, Jt. Chief of BrahmaKumaris and other senior brothers and sisters paid their tributes.
The Raja Yoga meditation sessions and discourses sharing the life and message of Prajapita Brahma Baba were organized throughout the day at all three campuses, and the atmosphere was filled with the fragrance of peace and tranquility. In the evening, the main event took place at the Diamond Hall of Shantivan Campus, Abu Road. All the Seniors of the institution interacted with the audience.
About Pitashri Prajapita Brahma
Pitashri Prajapita Brahma was the founding father of the Brahma Kumaris. Prior to the establishment of the institution, he was well known as Dada Lekhraj Kripalani. He was well-to-do diamond jeweler in Sindh, Hyderabad of the present Pakistan. In 1936, at the age of 60 a series of divine visions and spiritual revelations by the Supreme Soul transformed his life. He became the instrument of Almighty God for the establishment of the institution. Brahma Baba’s rock-hard faith, steadfast vision and an innate ability to cope with challenges and change made him a natural spiritual leader who steered the fledgling institution through difficult times.
Brahma Baba, born into a humble home as Lekhraj Kripalani in 1876, was the son of a village schoolmaster. Lekhraj was brought up within the disciplines of the Hindu tradition. He did not follow in his father’s footsteps as a teacher; instead he entered the jewellery business, earning considerable fortune as a diamond trader. As a businessman and as a family man, father of five children, Dada Lekraj maintained a highly respectable position within the local community and was known for his philanthropy.
Then, in 1936, at the age of 60, when most of his colleagues were planning their retirement, Dada Lekhraj entered into the most active and fascinating phase of his life, during which he became known as Brahma Baba.
Initially he felt called to invest more time in quiet reflection and solitude. Then one day, while in a meditative state Brahma Baba felt a warm flow of energy surrounding him, filling him with light and exposing him to a series of powerful visions. These visions continued periodically over several months. They gave him new insights into the innate qualities of human souls, revealed the mysterious entity of God and described the process of world transformation. The intensity of the messages conveyed by the visions was such that Brahma Baba felt compelled to wrap up his worldly business and devote himself to understanding the significance and application of this revealed knowledge. Although the visions ceased, their Source remained with him for the next 3 decades, guiding his transformation as well as that of those around him.
The living skills that Brahma Baba taught have stood the test of time. The young women that he put to the forefront, now in their eighties and nineties, have become beacons of love, peace and happiness in a world increasingly troubled by disordered relationships, greed, addiction, anger and violence.
Hindi News:
माउंट आबू, 18 जनवरी। ब्रह्माकुमारीज संस्था के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 51वीं पुण्य तिथि आज विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर संस्थान के अंतराष्ट्रीय मुख्यालय पाण्डव भवन में विशाल कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें भारत सहित कई देशों के हजारों राजयोगी बीके भाई बहनों की उपस्थिति में ब्रह्माकुमारी संगठन की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके दादी जानकीजी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके दादी रतनमोहिनीजी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके दादी इशुजी, बीके डॉ. निर्मला, बीके करूणा, बीके मृत्युंजय, बीके अमीरचंद, बीके शशि, बीके शीलू, बीके गीता, बीके अशोक गाबा, बीके मोहन सिंघल, बीके चन्द्रिकाबेन, बीके सरलाबेन, बीके शारदाबेन, बीके डॉ. सविता, बीके ललित, बीके गोलक समेत वरिष्ठ पदाधिकारी मौन रहकर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किये।
प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के समाधि स्थल ‘शान्ति स्तम्भ’ पर बी के भाई बहनों ने मौन साधना द्वारा विश्वशांति, भाईचारा, देश की सुख समृद्धि के लिए शान्ति के प्रकम्पन्न प्रवाहित किए। ब्रह्मा बाबा की तपस्यास्थली कुटिया, समाधिस्थल शांतिस्तंभ, मेडिटेशन हाल, ओमशांति भवन, ज्ञान सरोवर, शांतिवन आदि स्थानों पर दिन भर राजयोग ध्यान के कार्यक्रम हुए।
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माउंट आबू, 18 जनवरी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय पाण्डव भवन में शनिवार को संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की ५१वीं पुण्य तिथि विश्व शान्ति व मानवीय एकता दिवस के रूप में मनाई गई।
संगठन के सार्वभौमिक सभागार ओम शान्ति भवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संगठन की संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ने कहा कि बुद्धि रूपी पात्र को स्वच्छ बनाए रखने से ही ईश्वर की कृपा अनुभव होती है। मन में जो विकृतियां स्थान ले चुकी हैं उनसे छुटकारा पाने के लिए अध्यात्मिक ध्यान, राजयोग का नियमित अनुसरण करना चाहिए। परमात्मा की महिमा अनन्त है। अपने मन, वचन व कर्म के शुद्धिकरण को परमात्मा का न केवल गुणगान करना है बल्कि उनके गुणों का स्वयं में समावेश करना होगा। विश्वशान्ति के लिए मन में सबके प्रति कल्याण की भावना रखकर शुद्ध संकल्प करना भी महान सेवा है।
राजयोगिनी दादी पूर्णशांता ने कहा कि मनोंविकारों पर जीत प्राप्त करना ही सबसे बड़ी विजय है। देह में विराजमान आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान है। इस स्मृति से आत्मिक शक्तियों की ऊर्जा का प्रवाह जीवन चरित्र को श्रेष्ठ बनाने में मदद करता है।
ज्ञान सरोवर निदेशिका राजयोगिनी डॉ. निर्मला ने कहा कि त्यागवृत्ति से ही भाग्य का उदय होता है। मन को साधने के लिए राजयोग का निरंतर अभ्यास जरूरी है। जिससे जीवन में अविनाशी सुख, समृद्धि व खुशहाली की कामना फलीभूत होती है।
खेल प्रभाग की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बीके शशि बहन ने कहा कि प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने शिव परमात्मा के ज्ञान का स्पष्टीकरण कर समाज के विभिन्न वर्गों को एकमत बनाने की प्रबल शिक्षाएं दी।
शिक्षा प्रभाग अध्यक्ष बीके मृत्युजंय ने कहा कि स्वयं परमपिता शिव परमात्मा ने विश्व नवनिर्माण के लिए, मानवीय चरित्र को श्रेष्ठ बनाने और समाज उत्थान के लिए सन १९३६ में प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के माध्मय से इस विश्वविद्यालय की स्थापना की। जो वर्तमान समय विश्व के पांचों ही महाद्वीपों में विशालवट वृक्ष की तरह फैलकर समाज को नई दिशा देने में समाज के हर तबके को आत्मिक अनुभूति करवाकर परमात्मा से जोडऩे का अदभुत कार्य कर रहा है।
शिक्षा प्रभाग उपाध्यक्ष बीके शीलू बहन ने कहा कि मनोवृत्ति से लोगों की अशुद्ध भावनाओं को समाप्त किया जा सकता है। विश्व में बढ़ती चरित्रहीनता को मूल से नष्ट करना बड़ा कार्य है लेकिन सामुहिक रूप से इस कार्य को संपन्न करना कोई मुश्किल नहीं है।
इन्होंने भी किया संबोधित
समाज सेवा प्रभाग उपाध्यक्ष बीके अमीरचंद, ग्लोबल अस्पताल निदेशक डॉ. प्रताप मिढ्ढा, राजयोगिनी बीके शारदा बहन आदि ने भी ब्रह्मा बाबा के जीवन चरित्रों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का आहवान किया।
दिन भर चलते ध्यान, साधना के कार्यक्रम
सवेरे से ही देश-विदेशों से बड़ी संख्या में आए राजयोगी श्रद्धालूओं का ओम शान्ति भवन, प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के समाधि स्थल शान्ति स्तम्भ, बाबा का कमरा, तपस्यास्थली बाबा की कुटिया, हिस्ट्री हॉल आदि स्थानों पर जमावड़ा लगा गया। दिन भर साधना होती रही। संगठित रूप से राजयोग का अभ्यास कर विश्व में शान्ति के शक्तिशाली प्रकम्पन्न प्रवाहित किए।
माउंट आबू। ब्रह्माबाबा के समाधिस्थल पर ध्यान करती राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, दादी पूर्णशांता व अन्य।
माउंट आबू। ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि पर ओम शान्ति भवन में सभा को संबोधित करते वक्तागण।
माउंट आबू। ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथी पर ओम शान्ति भवन में ध्यान के लिए एकत्रित हुए राजयोगी श्रद्धालूगण।