कोरोना के संक्रमण से आज लोग तनाव में, इससे आज हमारे आसपास बन गया है भय का माहौल
जीवन में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जिसे हम अच्छी तरह से समझते हैं। ये समाज अगर बेहतर है तो रास्ते आसान हो जाते हैं। जब चीजें अनजान होती है तो मुश्किलें हमारा सामना करती हैं। ऐसी ही मुश्किल घड़ियों में करना क्या है ये जानना बहुत जरूरी होता है। पिछले कुछ दिनों से जो कुछ भी हम अपने आस-पास देख रहे हैं वो कुछ ऐसी ही मुश्किलें हैं। जहां पर हम जानते नहीं हैं कि हमें करना क्या है। अक्सर बीमारी अकेली नहीं होती है। बीमारी के साथ मृत्यु और मृत्यु के साथ भय होता है। आज हमारे आसपास डर का माहौल हावी होता जा रहा है। ऐसे समय पर हमें क्या करना चाहिए इसे हम जानने की कोशिश करते हैं। पिछले कुछ दिनों से अचानक की बातें सामने आई है। जीवन में कुछ बातें ऐसी होती है, जो हमें पता होती है। जीवन में कुछ बातें ऐसी होती है जो हमें अच्छी नहीं लगती हैं, जैसे किसी की मौत, किसी का एक्सीडेंट होना, किसी की नौकरी छूटना या किसी का रिश्ता टूटना। तो भी हम फील करते हैं कि ये हमारे साथ नहीं होगा। फिर अचानक हमारे जीवन में कोई ऐसी बात आती है तो हम उसका सामना नहीं कर पाते। आप काम के लिए घर से निकलते हैं। आपको पता है, ट्रैफिक होता है। ट्रैफिक जाम होना एक वास्तविकता है। तो भी हम उसमें अटकते हैं। मतलब कि जो परिस्थिति हमें पता है और हमारे जीवन में रोज होती है तो भी हम उसमें परेशान होते हैं। अब एक ऐसी परिस्थिति आ गई है, जिसके बारे में हमें पता ही नहीं था। हमें ये नहीं पता कि उसे ठीक कैसे करना है। यह शायद पहली घटना है जिसने एक ही समय पर पूरे विश्व को प्रभावित किया है। पहले शायद ही कभी कोई ऐसी चीज हुई हो जो पूरे विश्व को एक ही समय पर प्रभावित कर रही है। हमारे मन पर इसका असर हुआ है।
आज हमें जीवन की हर बात के लिए संकल्प करना है। पहले ट्रैफिक जाम था, आज वायरस है। दोनों चीजें परिस्थिति हैं। ये परिस्थिति हमारे बाहर है और मन की स्थिति भीतरी है। जो समीकरण हम जीवन में बहुत सालों से लेकर चल रहे हैं, उसकी वजह से ये चिंता और डर बढ़ा हुआ है। वो समीकरण था कि जैसी परिस्थिति होगी, वैसी मन की स्थिति होगी। जब इतनी बड़ी समस्या है तो परेशान होना सामान्य है। तनाव होना भी सामान्य है। डर पैदा करना भी सामान्य है। तो हमने नकारात्मक भावनाओं को सामान्य कह दिया। ऐसे करते-करते हम शायद बचपन से जी रहे हैं और शायद विश्व के सारे लोग इसी विश्वास के साथ जी रहे हैं। कोरोना वायरस की परिस्थति में शांत रहना, स्थिर रहना, निडर रहना, निर्भय रहना जरूरी है। आज उस समीकरण को फिर से चेक करने की आवश्यकता है। परिस्थिति बाहर है, मन की स्थिति मेरी है। परिस्थिति मन की स्थिति को नहीं बनाती। मन की स्थिति का प्रभाव परिस्थिति पर सौ प्रतिशत पड़ता है। जैसे इतने दिनों से हम सीख रहे हैं कि इस वायरस से अपने परिवार को, देश को और विश्व को बचाने के लिए हमें क्या-क्या करना है। सुनकर, समझकर हम सबने करना शुरू कर दिया। लेकिन, हमने यह नहीं सोचा कि इससे खुद को बचाने के लिए, सबको बचाने के लिए अपने मन के अंदर क्या करना है। हमने सोचा कि वायरस स्वास्थ्य पर असर होगा, बीमारी होगी और मौत भी हो सकती है। हम यह सोच रहे हैं अगर हम किसी से मिलें तो हमें पता होना चाहिए कि इनको तो संक्रमण नहीं है। अगर इनको है तो मैं इनके एक-दो फीट की दूरी में आ गई तो मुझे भी हो सकता है।
हम यह पता करें कि हम जिनसे भी मिल रहे हैं, उनको डर तो नहीं है। अगर उनको डर है और हम उनके एक-दो फीट की दूरी में बैठे हुए हैं तो वो डर हमारे अंदर भी आ जाएगा। वायरस का भय तो हमारे अंदर पहले से ही है, सामने वाले के अंदर भी है। घर में बैठे हुए चार लोगों के अंदर भी है। देश के 130 करोड़ लोगों के अंदर है। विश्व की जितनी आबादी है उसके अंदर है। क्या ये डर भी कुछ कर सकता है। डॉक्टर्स हमेंं ये बता रहे हैं कि डर हमारे इम्युनिटी सिस्टम पर प्रभाव डालता है। ये डर आज नहीं आया है। ये डर तो हमारे जीवन का वैसे भी हिस्सा था। लेकिन, पहले हम कभी-कभी डरते थे। अब तो आयु की भी कोई बात नहीं है। जब इस वायरस की बात आती है तो हम कहते हैं 10 से नीचे और 60 वर्ष से ऊपर के लोगों का ध्यान रखना चाहिए। ये बीमारी हो तो किसी को भी सकती है। लेकिन इम्युनिटी सिस्टम आज हम जांच लें। इम्युनिटी आयु पर निर्भर नहीं है। इम्युनिटी तो मन पर भी निर्भर है। हो सकता है कि वो 80 साल के हों, लेकिन मन से बहुत मजबूत हैं। उन्होंने कभी निगेटिव सोचा ही नहीं, अभी भी उनको कोई डर नहीं लग रहा है। अगर हम यह ध्यान रखें तो हम अपनी सोच को जांचना शुरू कर देंगे।
(यह लेखिका के अपने विचार हैं।)
बी.के. शिवानी ब्रह्माकुमारी
आज हमें जीवन की हर बात के लिए संकल्प करना है। पहले ट्रैफिक जाम था, आज वायरस है। दोनों चीजें परिस्थिति हैं। ये परिस्थिति हमारे बाहर है और मन की स्थिति भीतरी है। जो समीकरण हम जीवन में बहुत सालों से लेकर चल रहे हैं, उसकी वजह से ये चिंता और डर बढ़ा हुआ है। वो समीकरण था कि जैसी परिस्थिति होगी, वैसी मन की स्थिति होगी। जब इतनी बड़ी समस्या है तो परेशान होना सामान्य है। तनाव होना भी सामान्य है। डर पैदा करना भी सामान्य है। तो हमने नकारात्मक भावनाओं को सामान्य कह दिया। ऐसे करते-करते हम शायद बचपन से जी रहे हैं और शायद विश्व के सारे लोग इसी विश्वास के साथ जी रहे हैं। कोरोना वायरस की परिस्थति में शांत रहना, स्थिर रहना, निडर रहना, निर्भय रहना जरूरी है। आज उस समीकरण को फिर से चेक करने की आवश्यकता है। परिस्थिति बाहर है, मन की स्थिति मेरी है। परिस्थिति मन की स्थिति को नहीं बनाती। मन की स्थिति का प्रभाव परिस्थिति पर सौ प्रतिशत पड़ता है। जैसे इतने दिनों से हम सीख रहे हैं कि इस वायरस से अपने परिवार को, देश को और विश्व को बचाने के लिए हमें क्या-क्या करना है। सुनकर, समझकर हम सबने करना शुरू कर दिया। लेकिन, हमने यह नहीं सोचा कि इससे खुद को बचाने के लिए, सबको बचाने के लिए अपने मन के अंदर क्या करना है। हमने सोचा कि वायरस स्वास्थ्य पर असर होगा, बीमारी होगी और मौत भी हो सकती है। हम यह सोच रहे हैं अगर हम किसी से मिलें तो हमें पता होना चाहिए कि इनको तो संक्रमण नहीं है। अगर इनको है तो मैं इनके एक-दो फीट की दूरी में आ गई तो मुझे भी हो सकता है।
हम यह पता करें कि हम जिनसे भी मिल रहे हैं, उनको डर तो नहीं है। अगर उनको डर है और हम उनके एक-दो फीट की दूरी में बैठे हुए हैं तो वो डर हमारे अंदर भी आ जाएगा। वायरस का भय तो हमारे अंदर पहले से ही है, सामने वाले के अंदर भी है। घर में बैठे हुए चार लोगों के अंदर भी है। देश के 130 करोड़ लोगों के अंदर है। विश्व की जितनी आबादी है उसके अंदर है। क्या ये डर भी कुछ कर सकता है। डॉक्टर्स हमेंं ये बता रहे हैं कि डर हमारे इम्युनिटी सिस्टम पर प्रभाव डालता है। ये डर आज नहीं आया है। ये डर तो हमारे जीवन का वैसे भी हिस्सा था। लेकिन, पहले हम कभी-कभी डरते थे। अब तो आयु की भी कोई बात नहीं है। जब इस वायरस की बात आती है तो हम कहते हैं 10 से नीचे और 60 वर्ष से ऊपर के लोगों का ध्यान रखना चाहिए। ये बीमारी हो तो किसी को भी सकती है। लेकिन इम्युनिटी सिस्टम आज हम जांच लें। इम्युनिटी आयु पर निर्भर नहीं है। इम्युनिटी तो मन पर भी निर्भर है। हो सकता है कि वो 80 साल के हों, लेकिन मन से बहुत मजबूत हैं। उन्होंने कभी निगेटिव सोचा ही नहीं, अभी भी उनको कोई डर नहीं लग रहा है। अगर हम यह ध्यान रखें तो हम अपनी सोच को जांचना शुरू कर देंगे।
(यह लेखिका के अपने विचार हैं।)
बी.के. शिवानी ब्रह्माकुमारी
awakeningwithbks@gmail.com
Article published in Dainik Bhaskar, Pali Under Section Adhyatm on 23-03-2020