Gurugram: Three days conference on Shrimat Bhagwat Gita was Held at Om Shanti Retreat Centre, here on 27th Jan. 2018. Speaking on the Inaugural Session, Shri Shri 1008 Dr. Swami Shivswaroopanand Saraswati from Shri Panchayati Akhara Mahanirwani, Jodhpur said, “if our Thoughts go Against nature then the form of religion distorts into irreligion. We are proud of our culture which is the oldest in the world. If we have to make the world peaceful and happier then we should again awake our culture to motivate the world. In fact we can awaken our culture through Shrimat Bhagwat Gita. We have not to bother about what others are doing but to think about self. Nothing is destroyed in the universe, only it changes the form.”
Dr. H R Nagendra, Chancellor, Swami Vivekanand Yoga Research Institute expressed his views, that there is regular downfall in the level of humanity despite that science has given us everything, because we visualize everything physically whereas we are not the body made up of five elements. In fact we are souls operating through our body. We can treat our body by scientific instruments and medicines but to treat the soul the only method is Rajyoga and Spirituality. He said, Gita is the only scripture which gives the complete knowledge of the soul. It contains true essence of spirituality.
Vedantacharya Sarvanand Saraswati, founder Mahashktipeeth, Delhi clarified in his views that negativity is on the extreme in present time. People even commit suicide due to negative thoughts. He further said, that we view a beggar with disgusted feeling but actually we are all begging for love, respect, peace etc. from others throughout the day.
Dadi Janki, Chief of Brahmakumaris, while giving her blessings said, that we are required to concentrate on self so that our life becomes an example for others. She emphasised that truth, cleanliness and simplicity are essential in our life because she herself has experienced these in her life. She further said that more we become simpler better we can be example for others. We can demonstrate through our life, if we imbibe the principles of Gita.
B K Brijmohan, Additional Secretary General of Brahmakumaris said in fact Gita represents the incarnation of God. We get motivation by reading Gita, but not the power to transform our life. For this purpose He reincarnates to make us powerful to fight our vices. He further said, that it is the same time when He reincarnates to re-establish the religion and destroy the irreligion.
Mahamandleshwar Jivandas Maharaj, Founder Yatidham, Rishikesh expressed his views that purity of thought is essential for establishing peace in the world. He further said that there is great power in truth and social situation can be improved by adopting the truth. Swami Vishwanand Maharaj from Rajkot, Gujarat said that we are required to tell the reality of today’s situation. He further said that our community of sadhus will have to work in association with Brahmakumaris. He said that we are lucky for having taken birth in Bharat land. Bharat is a great pilgrimage as God takes incarnation here. Several speakers also expressed their good wishes for the program. Ex-Justice Ishwaraiya from Hydrabad High Court, Sr. Rajyoga Teacher B K Usha from Mount Abu and Dr. Basavraj Rajrishi from Hubli were some other prominent speakers who participated in the program.
प्रेस विज्ञप्ति
ओआरसी में तीन दिवसीय गीता महासमेलन का आरभ
श्रीमद् भगवद्गीता के द्वारा ही आएगी सांस्कृतिक जागृति – स्वामी शिव स्वरूपानन्द जी
भगवद्गीता में समाया है आध्यत्मिकता का सत्य सार – डॉ नागेन्द्र
सजाई, सफाई और सादगी मानवता के श्रेष्ठ उपहार हैं – दादी जानकी
27 जनवरी 2018 हमारा स्वभाव प्रकृति के विरूद्ध हो जाता है तब धर्म का स्वरूप विकृत होकर अधर्म का रूप ले लेता
है। हमें गर्व है कि हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृति है। हमें अगर विश्व को सुख-शान्ति स6पन्न
बनाना है तो अपनी संस्कृति को पुन: जागृत कर विश्व को प्रेरित करना है। वास्तव में श्रीमद् भगवद्गीता के
द्वारा ही हम सांस्कृतिक जागृति ला सकते हैं। उत विचार ब्रह्माकुमारीज़ के भोड़ाकलां स्थित ओम्
शान्ति रिट्रीट सेन्टर में आयोजित तीन दिवसीय गीता महास6मेलन के उद्घाटन सत्र मे जोधपुर से पधारे
आचार्य पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 डॉ स्वामी शिवस्वरूपानन्द जी सरस्वती जी(श्री
पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी)ने व्यत किये। उन्होंने कहा कि संसार या कर रहा है उसकी
चिन्ता मत करो बल्कि हम या कर रहे हैं, उसका चिन्तन करने की आवश्यकता है। स्वामी जी ने कहा कि
प्रकृति में कोई भी चीज़ समाप्त नहीं होती, उसका रूपान्तरण होता है।
स्वामी विवेकानन्द योगा अनुसंधान संस्थान के कुलपति डॉ. एच. आर. नागेन्द्र ने कहा कि आज
विज्ञान ने हमें सब कुछ दिया है लेकिन फिर भी मानव के जीवन स्तर में गिरावट ही आ रही है। उन्होंने
कहा कि विज्ञान के युग में हम हर चीज़ को भौतिक दृष्टि से ही देखते हैं, लेकिन वास्तव में हम केवल
पांच तत्वों से निर्मित एक शरीर नहीं हैं। हम सभी इस शरीर के द्वारा कार्य करने वाली आत्मा हैं जो प्रकृति
से अलग है। शरीर का उपचार हम विज्ञान के अनेक उपकरणों एवं औषधियों से कर सकते हैं लेकिन
आत्मा का उपचार करने के लिए योग ही एक मात्र माध्यम है। उन्होंने कहा गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है,
जिसमें आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान है। गीता में आध्यात्मिकता का सत्य सार समाया है।
दिल्ली से पधारे महाश1ितपीठ के संस्थापक वेदान्ताचार्य सर्वानन्द सरस्वती ने अपने विचारों में स्पष्ट
किया कि वर्तमान समय नकारात्मकता अपने चरम पर पहुँच गई है। आज नकारात्मक विचारों के कारण ही
कई लोग अपने जीवन को भी नष्ट कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आज हम किसी भिखारी को ग्लानि की
दृष्टि से देखते हैं लेकिन वास्तव में हम स्वयं को देखें कि हम भी सारा दिन स6मान की, प्यार की, शान्ति
की किसी न किसी से भीख मांगते रहते हैं।
ब्रह्माकुमारीज़ की मुख्य प्रशासिका दादी जानकी जी ने अपने आर्शीवचन में कहा कि बोलने से पहले
हम स्वयं को देखें। हमारा जीवन दूसरों के लिए एक उदाहरण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन में
सजाई, सफाई और सादगी बहुत जरूरी हैं। दादी जी ने कहा कि मैंने अपने जीवन में इन तीनों का अनुभव
किया है। उन्होंने कहा कि सादगी अर्थात् सिमपल जीवन हो, जितना हम सि6पल रहते हैं, उतना ही दूसरों
के लिए अक्वछा सिमपल बन सकते हैं। दादी जी ने कहा कि हमारा जीवन ऐसा हो कि जो भी देखे उसे जैसे
शान्ति का वरदान मिल लाए। जब गीता हमारे जीवन से प्रत्यक्ष होगी तब हमें किसी को कहने की भी
आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
ब्रह्माकुमारीज़ के अतिरिकत महासचिव बृजमोहन जी ने अपने संबोधन में कहा कि गीता तो वास्तव में
परमात्मा के अवतरण की यादगार है। यादगार से हमें प्रेरणा जरूर मिलती है लेकिन जीवन को महान बनाने
की शक्ति उससे प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए परमात्मा पुन: अवतरित होकर ही हमें वो शक्ति प्रदान कर
सकते हैं। उन्होंने कहा कि ये वही समय है जब गीता के भगवान को पुन: आकर सत्य धर्म की स्थापना
और अधर्म करना पड़ता है।
ऋषिकेश से आए यतिधाम के संस्थापक महामंडलेश्वर जीवनदास जी महाराज ने अपने उद्बोधन में
कहा कि पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना करने के लिए चि8ा की शुद्धि बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि
सत्य में बड़ी ताकत है। सत्य को अपनाने से ही सामाजिक व्यवस्था बनी रह सकती है।
राजकोट, गुजरात से पधारे स्वामी विश्वानन्द जी महाराज ने अपने विचार स्पष्ट करते हुए कहा कि हम
सभी को आज वास्तविक सत्य को समझकर , सबको बताने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे
साधू समाज को भी ब्रह्माकुमारी बहनों के साथ मिलकर कार्य करना होगा। स्वामी जी ने कहा कि हम सब
बड़े भाग्यशाली हैं जो भारत भूमि में पैदा हुए हैं। ये भारत महान तीर्थ है केयोंकि यहाँ पर ही भगवान का
अवतरण होता है। उद्घाटन से पूर्व स्वागत सत्र का भी आयोजन हुआ जिसमें आये हुए मेहमानों का स्वागत
किया गया। साथ ही गीत, कविता, नृत्य एवं नाटक के द्वारा भी सभी ने कार्यक्रम का आनन्द लिया। अनेक
वक्ताओं ने कार्यक्रम के प्रति अपनी शुभ कामनाएं भी व्यक्त की।
कार्यक्रम में अनेक विचारकों ने अपने विचार रखे। जिसमें मु2य रूप से हैदराबाद उज न्यायालय के पूर्व
न्यायाधीश वी. ईश्वरैया, माउन्ट आबू से पधारी वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका बी.के. उषा, हुबली से पधारे डॉ.
बसवराज राजऋषि एवं अन्य। कार्यक्रम में अनेक लोगों ने शिरकत की।
कैप्शन:- १. दादी जानकी जी
२. श्री श्री 1008 वस्वरूपानन्द जी सरस्वती
३. स्वामी सर्वानन्द सरस्वती
४. श्री श्री गोपाल कृष्ण स्वामी
५. डॉ. नागेन्द्र
६. बी. के. बृजमोहन
७. बी. के. उषा
८. बी. के. शारदा
९. बी. के. रामनाथ
१०. प्रो. एस. एम. मिश्रा
११. स्वामी जीवन दास जी महाराज
१२. जस्टिस ईश्वरैया
१३. बी. के. त्रिनाथ
१४. दीप प्र”वलित करते हुए दादी जानकी जी, श्री श्री 1008 शिवस्वरूपानन्द जी,
स्वामी जीवनदास जी, श्री श्री स्वामी गोपाल कृष्ण जी, स्वामी विश्वानन्द जी, डा. नागेन्द्र, आशा
दीदी, शारदा दीदी, बसवराज जी, बी. के. उषा, हंसा बहन एवं अन्य।
१५. स्वागत सत्र में मंचासीन अतिथिगण
१६. उद्घाटन सत्र में मंचासीन अतिथिगण
१७. नाटक का मंचन करते हुए कलाकार
१८. कार्यक्रम में उपस्थित जन समूह