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Chief of Brahma Kumaris Dr. Dadi Hridaya Mohini Passed Away, Cremation on 13th March

Mt Abu : Dr. Dadi Hridaya Mohini, Global Chief of the Brahma Kumaris, the world’s largest spiritual organization run by women, passed away at the age of 93 after a prolonged illness. She breathed her last at 10.30 am on Thursday, 11th March 2021 at Saifee Hospital, Mumbai. Her last rites will be performed on Saturday, 13th March at Shantivan Campus of Brahmakumaris Headquarters, Abu Road, Near Mount Abu (Rajasthan).
 
Rajyogini Brahma Kumari Dr. Dadi Hirdaya Mohini, affectionately known as Dadi Gulzar, has been associated with the Brahma Kumaris right from the inception since the tender age of 8 years in1937. Having undergone all aspects of training from such early beginnings, she is now recognized as a great yogi, much sought after for enlightenment on attaining mental concentration, peace of mind, stability in meditation, emotional control, etc. She is committed to living and teaching the values and the elevated spiritual principles which come from the ancient teachings of Raja Yoga. She had set up more than 8000 Raja Yoga Centres in 140 countries around the world. 
 
Dadi Hridaya Mohini was awarded the honorary degree of Doctor of Literature by the North Odisha University, Baripada, Mayurbhanj, Odisha (India) for her contribution towards spreading the message of values, spirituality, and social service in her unique role as a messenger of the Incorporeal God. Dadi Ji has devotedly served the Godly mission by visiting as many as 112 countries. She has delivered lectures, with mastery over various and varied subjects like spirituality, philosophy, Raja yoga, and stress-free living connected with our day-to-day life. She has a clarity of thought and rich experience and simplicity of style. She has also been the organizer of many international and national conferences, fairs, exhibitions, campaigns, etc., and enlightens fluently on any subject of spiritual interest.

 

News in Hindi

ब्रह्माकुमारीज की मुखिया 93 वर्षीय दादी हृदयमोहिनी का देहावसान

दिव्य दृष्टि का था वरदान, 1969 से 2016 तक परमात्मा के संदेशवाहक की निभाई भूमिका
एक साल पहले दीदी जानकी के निधन के बाद नियुक्त की गई थीं ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासिका
आठ साल की उम्र ब्रह्मा बाबा द्वारा खोले गए बोर्डिंग स्कूल में लिया था प्रवेश
विश्व के कई देशों में जाकर दिया आध्यात्मिकता का संदेश
नार्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने 2017 में डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की उपाधि से किया था विभूषित

11 मार्च, आबू रोड(राजस्थान)। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुखिया राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी का गुरुवार सुबह 10.30 बजे देवलोकगमन हो गया। 93 वर्ष की आयु में उन्होंने मुम्बई के सैफी हास्पिटल में अंतिम सांस ली। उन्हें दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त था। एयर एंबुलेंस से उनके पार्थिव शरीर को शांतिवन लाया जाएगा। अंतिम संस्कार संस्थान के शांतिवन में 13 मार्च को किया जाएगा। दादी के निधन पर राष्ट्पति से लेकर प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने शोक व्यक्त करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है।
ब्रह्माकुमारीज के सूचना निदेशक बीके करुणा ने बताया कि राजयोगिनी दादी हृदय मोहिनी जी का स्वास्थ्य कुछ समय से ठीक नहीं चल रहा था। मुम्बई के सैफी हॉस्पिटल में आपका कुछ समय से स्वास्थ्य लाभ चल रहा था। दादीजी की निधन की सूचना पर संस्थान के भारत सहित विश्व के 140 देशों में स्थित सेवाकेन्द्रों पर शोक की लहर दौड़ गई। साथ ही ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है।

वर्ष 1928 में कराची में हुआ था जन्म-
दादी हृदयमोहिनी के बचपन का नाम शोभा था। आपका जन्म वर्ष 1928 में कराची में हुआ था। आप जब 8 वर्ष की थी तब संस्था के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा द्वारा खोले गए ओम निवास बोर्डिंग स्कूल में दाखिला लिया। यहां आपने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। स्कूल में बाबा और मम्मा (संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका) के स्नेह, प्यार और दुलार ने इतना प्रभावित किया कि छोटी सी उम्र में ही अपना जीवन उनके समान बनाने की निश्चय किया। वहीं आपकी लौकिक मां की भक्ति भाव से परिपूर्ण थीं।

मात्र चौथी कक्षा तक की थी पढ़ाई-
दादी हृदयमोहिनी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि होने से आप जब भी ध्यान में बैठतीं तो शुरुआत के समय से ही दिव्य अनुभूतियां होने लगीं। यहां तक कि आपको कभी बार ध्यान के दौरान दिव्य आत्माओं के साक्षात्कार हुए, जिनका जिक्र उन्होंने ध्यान के बाद ब्रह्मा बाबा और अपनी साथी बहनों से भी किया।

शांत, गंभीर और गहन व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति-
दादी हृदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका गंभीर व्यक्तित्व। बचपन में जहां अन्य बच्चे स्कूल में शरारतें करते और खेल-कूद में दिलचस्पी के साथ भाग लेते थे, वहीं आप गहन चिंतन की मुद्रा में हमेशा रहतीं। धीरे-धीरे उम्र के साथ जब आप मात्र 8-9 वर्ष की थीं तब से आपको दिव्य लोक की अनुभूति होने लगी। आपकी बुद्धि की लाइन इतनी साफ और स्पष्ट थी कि ध्यान में जब आप खुद को आत्मा समझकर परमात्मा का ध्यान करतीं तो उन्हें यह आभास ही नहीं रहता था कि वह इस जमीन पर हैं।

सादगी, सरलता और सौम्यता की थीं मिसाल-
दादी का पूरा जीवन सादगी, सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा। बचपन से ही विशेष योग-साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया था कि उनके संपर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या और साधना की अनुभूति होती थी। उनके चेहरे पर तेज का आभामंडल उनकी तपस्या की कहानीं साफ बयां करता था।

1969 में ब्रह्मा बाबा के निधन के बाद बनीं परमात्म दूत-
18 जनवरी 1969 में संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद परमात्म आदेशानुसार दादी हृदयमोहिनी ने परमात्मा संदेशवाहक और दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाई। दादीजी ने 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू में हर वर्ष आने वाले लाखों भाई-बहनें के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग-तपस्या बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। एक बार चर्चा के दौरान दादीजी ने बताया था कि जब में मन की शक्ति से वतन में जाती हूं तो आत्मा तो शरीर में रहती है लेकिन मुझे इस शरीर का भान नहीं रहता है। उस दौरान मेरे द्वारा जो वचन उच्चारित होते हैं वह भी मुझे याद नहीं रहते हैं।

बाबा से दादीजी को हुए थे साक्षात्कार-
एक साक्षात्कार के दौरान दादी ने बताया था कि जब वह 9 वर्ष की थीं और अपने मामा के यहां गईं थीं, तभी उनके घर ब्रह्मा बाबा का आना हुआ। यहां बाबा से उन्हें दिव्य साक्षात्कार हुआ था। बाबा हम बच्चों का इतना ख्याल रखते थे कि खुद अपने हाथ से दूध में काजू-बादाम डालकर खिलाते थे। बाबा का प्यार, स्नेह इतना मिला कि कभी भी लौकिक मां-बाप की याद नहीं आई।

14 साल तक हैदराबाद में रहकर की कठिन साधना-
दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग-साधना की। इन वर्षों में खाने-पीने को छोडक़र दिन-रात योग साधना में वह लगी रहती थीं। इसके साथ ही बाबा एक-एक सप्ताह का मौन कराते थे। तभ से दादी का स्वभाव बन गया था कि जितना काम हो उतना ही बात करती थीं। अंत समय तक वह मौन में रहीं।

नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने प्रदान की डिग्री-
राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, बारीपाड़ा ने डी. लिट (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) की उपाधि से विभूषित किया है। दादी को यह उपाधि उड़ीसा में प्रभु के संदेशवाहक के रूप में लोगों में आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर प्रदान की गई। संस्था की 80वीं वर्षगांठ पर मुख्यालय माउण्ट आबू, आबू रोड के शांतिवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन एवं सांस्कृतिक महोत्सव में 28 मार्च 2017 को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उपाधि प्रदान की। उन्होंने दादी के कार्यों की सराहना करते हुए इसे गौरव का विषय बताया था। कुलपति मिश्रा ने कहा कि मैं आज यह डिग्री दादी को देते हुए बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। संस्था विश्व शांति, प्रेम, भाईचारा और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में जो कार्य कर रही है वह अनुपम उदाहरण है।

दादी जानकी के निधन के बाद बनीं थीं मुख्य प्रशासिका-
पिछले साल 27 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी जी के निधन के बाद आपको संस्थान की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया था। अस्वस्थ होने के बाद भी आपको दिन-रात लोगों का कल्याण करने की भावना लगी रहती थी। दादीजी मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों का सारा समाचार लेतीं और समय प्रति समय निर्देशन देतीं।

दादीजी को कभी हलचल में व उदास नहीं देखा-
दादी हृदयमोहिनीजी की निजी सचिव ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि मुझे बचपन से ही दादीजी के अंग-संग रहने का सौभाग्य मिला। दादीजी हॉस्पिटल में भर्ती होने के बाद भी कभी उन्हें मन से विचलित या परेशान होते नहीं देखा। बीमारी की स्थिति में भी उनका चेहना और मन सदा परमात्मा के ध्यान में लगा रहता था।

प्रात: काल से शुरू होता था ध्यान साधना का दौर-
ब्रह्माकुमारी नीलू बहन ने बताया कि दादीजी हमेशा तीन बजे ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाती थीं। इसके साथ ही उनकी दिनचर्या की शुरुआत साधना के साथ होती थी। यहां तक कि चलते-फिरते, खाते-पीते ईश्वर के ध्यान में मग्न रहतीं।

विश्वभर के सेवाकेंद्रों पर साधना का दौर जारी-
दादीजी के निधन की सूचना के बाद संस्थान के विश्वभर में स्थित सेवाकेन्द्रों पर साधना का दौर शुरू हो गया है। संस्थान से जुड़े बीके भाई- बहनें दादीजी के निमित्त विशेष योग साधना में जुट गए हैं।

बायोडाटा

 बारह वर्ष की उम्र में आध्यात्म से जुड़ी राजयोगिनी दादी ह्रदयमोहिनी

आबूरोड. यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवताI जहां  नारी की पूजा होती हैं, वहीं देवता निवास करते हैंI 12 वर्ष की उम्र में आध्यात्म से जुड़ी ह्रदयमोहिनी जीवन के अस्सी वर्ष आध्यात्मिक जीवन को देने के बाद आज वे 46 हजार बहनों की मार्गदर्शक व अभिभावक हैं|

दुनियाभर में फैली ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका 93 वर्षीय राजयोगिनी दादी ह्रदयमोहिनी ने संस्थान का नेतृत्व कर विश्व में यह प्रमाणित कर दिया है कि नारी विश्व की जननी हैंI संस्कारों का पुंज और नए समाज का सृजनहार भी |

1928 में कराची में जन्मी दादी ह्रदयमोहिनी को हिंदी, अंग्रेजी व गुजराती का ज्ञान है |

केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई के बाद वे 12 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारी संस्थान के संम्पर्क में आईI वर्षों के आध्यात्मिक ज्ञान के चलते 23 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी के निधन के बाद संस्था की बागडोर  राजयोगिनी ह्रदयमोहिनी को सौंपी गईI ह्रदयमोहिनी संस्थान की मुख्य प्रशासिका के रूप में संस्थान के विश्व में 140 देशों में स्थित 8 हजार से अधिक केद्रों के जरिए संस्थान से जुडी 46  हजार महिला अनुयायियों की अभिभावक हैंI

दादी ह्रदयमोहिनी ने स्वयं को केवल मानव मात्र की सेवा, धन व वैभवों के बजाय मानवीय मूल्यों और श्रेष्ठ संस्कारों से करने पर जोर दियाI

लाखों लोगों को अपने दिव्य दृष्टि व आध्यात्मिक ऊर्जा से नए जीवन का वरदान देने का कार्य कर रही हैI

शांत स्वभाव के साथ गंभीरता व्यक्तित्व  में शामिल

दादी ह्रदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता है उनका गभीर व्यक्तित्वI हमेशा गहन चिंतन की मुद्रा में रहने वाले ह्रदयमोहिनी का पूरा जीवन सादगी, संरलता और सौम्यता की मिसाल रहा। बचपन से ही विशेष योग-साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया कि उनके संम्पर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या व साधना की अनुभूति होतीI 18 जनवरी 1959 में संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के निधन के बाद दादी ह्रदयमोहिनी ने परमात्मा संदेशवाहक व दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान व दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाईI 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउन्टआबू में हर वर्ष आने वाले लाखों अनुयायियों के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग-तपस्या के लिए प्रेरित कियाI दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग-साधना कीI इन वर्षों में खाने-पीने को छोड़कर दिन-रात योग साधना में वह लगी रहतीI तभी से दादी का स्वभाव बन गया कि जितना काम होता उतनी ही बात करती हैंI उनके निर्देशन में पूरे विश्व में आध्यात्मिक ज्ञान व राजयोग शिक्षा से लोगों के जीवन में इंसान को श्रेष्ठ बनाने की कला का कार्य प्रारम्भ हैI दादी का कहना है कि यदि नारी अपने रूपों को जान व पहचान लें तो उसके जीवन में एक अदभुत बदलाव आ सकता है, क्योंकि वह शक्ति पुंज हैI

नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने प्रदान की डिग्री

राजयोगिनी दादी ह्रदयमोहिनी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, बारीपाड़ा ने डी. लिट. (डॉक्ट्रेट ऑफ लिटरेचर) की उपाधि से सम्मानित किया हैंI दादी को यह उपाधि उड़ीसा में संदेशवाहक के रूप में लोगों में आध्यात्मिकता का प्रचार प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में योगदान पर प्रदान की गईI पिछले कुछ समय से अस्वस्थ होने के बावजूद ह्रदयमोहिनी दिन रात लोगों का कल्याण करने की भावना में लगी रहती हैंI मुख्य प्रशासिका मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों की जानकारी लेकर दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं |

 

 

 

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