Creation of a value-based society is the first and foremost need of the hour. Depletion of human values from the society has caused the emergence of violence, adulteration and corruption in vast and widespread measure. The new generation has changed the definition of values by adopting cut-throat competition, non-cooperation and mercilessness. Currently, values have been adopted as easy sources of timely opportunity, market benefit, usefulness and consumerism. Therefore, relations, roles ideals, aim and objectives too have been changed drastically by straying from the value-based tracks. Modern day human beings themselves have become the enemies of fellow beings and the humanity as a whole.
The managing bodies and executive social units responsible for social adjustments, regulations and enforcement have also become derailed from trodden tracks of values and ideals. People have lost their faith in them. But the problem is the lack of any substituting bodies or units which are embodiment of values and ideals. Therefore everything is running blindly as the inaccurate interpretation of the elephants by the blinds. At the base of a functional society lies the dysfunctionality. All are aware of this chaotic dysfunctionality, but no definite way out is found as a solution.
Media’s human friendly values have been depleted too. However, still Media is at the central core of the human and social relationships, transfer of ideas, optimism and value-based behaviour amongst people. Many a times, people have created energy of optimism and inspiration in order to stabilize the tottering and shattering base of Media. Even now, Media is the only reliable centre and source for discussions and debates. Still people have faith that if the role, target and way of functioning and value-consciousness of Media are reset, the society will be redirected to the right path in no time. Hence, if Media accept its role in creating a value-based, inclusive, integrated and positive society, then it will take no time for the inevitable change.
Hindi Text:
मूल्य आधारित समाज के लिए मीडिया एजेंडा की पुनर्रचना
मूल्य आधारित समाज की रचना आज की प्रथम और महती आवश्यकता है. मानवीय मूल्यों के क्षरण से समाज में हिंसा, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, आदि अपने व्यापक और बड़े स्वरुप में मौजूद हैं. नयी पीढ़ी ने तो एक तरह से स्पर्धा, असहयोग, दयाहीनता आदि को गुणों के रूप में अपनाकर मूल्यों की परिभाषा ही बदल दी है. मूल्य अब समय, बाजार, उपयोगिता, उपभोग आदि के अनुसार स्वीकार किये जाने लगे हैं. इस सब ने सम्बन्धों, भूमिकाओं, आदर्शों, लक्ष्यों आदि में भी व्यापक परिवर्तन किये हैं, इससे ही आज का मनुष्य स्वयं ही मानव और मानवीयता का शत्रु बनता जा रहा है.
समाज की व्यवस्था, नियमन और उनके क्रियान्वयन की उत्तरदायी इकाइयां भी मूल्यों और आदर्शों से बेपटरी हो गई हैं. लोगों का विश्वास भी उनमें अब कम होता जा रहा है. पर दिक्कत यह है कि उनकी कोई स्थानापन्न निकाय या इकाइयाँ नहीं हैं. इसलिए सब कुछ अंधों के हाथी की तरह चल रहा है. ऊपर से व्यवस्थित समाज के आधार में अव्यवस्था ही है. सब इसे जानते हैं पर किसी को कोई सुनिश्चित रास्ता नजर नहीं आ रहा है.
मीडिया के मानव सरोकारी मूल्यों में भी क्षरण तो हुआ है, पर वह अब भी लोगों के बीच सम्बन्ध, आशा, विचार और मूल्यानुगत आचरण का केंद्र है. लोगों ने एक से अधिक बार उसे हिलते और दरकते आधारों से पुनः स्थापित करने में प्रेरणा और आशा का संचार किया है और अब भी जानकारी, विचार और विमर्शों का वह एकमेव केंद्र है. अब भी लगता है कि यदि उसकी भूमिका, आशय और मूल्य चेतना का पुनर्गठन, लक्ष्यीकरण कर दिया जाये या वह स्वयं कर ले तो समाज को मूल्य आधारित होने की तरफ मुड़ने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. यानि मीडिया अपना एजेंडा एक बार फिर से मूल्य आधारित, समावेशी, सकारात्मक समाज रचना का स्वीकार कर ले तो परिवर्तन निश्चित है, ऐसा माना जा सकता है.
Prof. Kamal Dixit