International Motivational Speaker Sister BK Shivani wrote article published in India’s largest hindi daily newspapers ‘Dainik Bhaskar” Jaipur Edition on 10th April 2020.
Every cell in our body is affected by our thinking.
In CoronaVirus, with repeated washing of hands, ‘Think right’ should also be on the list of caution.
The most important thing in today’s time is to breakdown the corona virus and we have to do it. The message we are doing the most is to wash hands, stay away, keep the house clean. But, above all, keep that we have to think right. We will clean the house, but if there is panic, worry and fear in that house then we cannot say it clean. Whoever enters it will also be affected. So in your list of do-it-yourself, put ‘think right’ at the top of your caution list. It is important to clean the hands frequently. Also, keeping the mind clean continuously is more important than that. Hand washing is easy. If you teach even this small child, then that child comes and reminds the parents that they have to wash their hands. We have to convince ourselves, our family members and all the people around us to keep the mind clean. Because who is impacting our state of mind, our every thought first affects our emotions.
If we thought that the virus was spreading so much, today 400 people are affected. With this one information, we are creating fearful situations around us. We will feel as we think. We do not even know that we are producing ideas. Second, our every thought is going on every part of our body. Medical science also says that every thought of ours affects every cell of our body. Now we sat and thought in a thousand ways. We thought that we are avoiding something, but lest we create some other disease. Right now Corona will take some time to recover and it will go 100%. In our body we do not know which organ is weak. Somebody’s hand is weak, one’s lower part is a little weak, one’s spine is a little weak. When there are talk of constant fear and worry, then it will affect the weak body part, because many of us have diseases running on the border line. If you remain in fear for one month, there will not be much loss. But, if someone walks on the border line for a month in fear, then our body does not have the strength to bear it. Third, all our thinking is reaching people. We can get away from people to avoid the virus, which we all have done. But being locked in the house, we cannot escape anyone’s thoughts and waves. If someone is creating an atmosphere of fear and anxiety in the neighborhood, then its ripple effect comes inside our house.
We have to remember that what I am thinking while sitting at home is not only causing loss to me, but all the people sitting in the house. Its loss is happening in our neighborhood. Its effect is going on all over the country, the whole creation. When we are thinking in the mind, we do not think that anyone else is visible. In a situation of fear, we can think that something may happen to me. We even wonder what will happen to my family after me? We even think about what my children will do next. It means you cannot stop the energy of fear. Now we have to tell ourselves immediately where our fear is reaching. We all know what is the effect of collective consciousness. Miracles happen in our lives when everyone prays together, meditates, thinks well. Disaster will come when everyone will create an atmosphere of fear. I will also contribute to this. When we are doing social distancing, then emotional correction is also very important. I have to take care of my mind, so that my fear does not cause fear in anyone else.
Why are we quarantining ourselves 14 days? If we have this disease then we should get away from people. So that no one else happens to me. But, quarantine should also be inside the mind. The fear should not arise in anyone because of my fear. For that we have to check ourselves inside the mind. We cannot get away from anyone for that. But, one has to think while sitting in the midst of it all.
(These are the author’s own views.)
Original Article in Hindi:
हमारी सोच से शरीर की हर कोशिका होती है प्रभावित
कोरोना में बार-बार हाथों को धोने के साथ ही ‘थिंक राइट’ भी हो सावधानी की सूची में
बी.के. शिवानी,ब्रह्माकुमारी
awakeningwithbks@gmail.com
आज के समय में सबसे महत्वपूर्ण बात है कोरोना वायरस को ब्रेकडाउन करना और यह हमें करना है। हम सबसे ज्यादा मैसेजेस ये कर रहे हैं कि हाथ धोना है, दूर रहना है, घर साफ रखना है। लेकिन, इन सब में सबसे ऊपर रखिए कि हमें सही सोचना है। हम घर को साफ कर लेंगे, लेकिन अगर उस घर में घबराहट, चिंता और डर होगा तो हम उसे साफ नहीं कह सकते हैं। उसमें जो भी प्रवेश करेगा, उस पर भी उसका असर पड़ेगा। इसलिए अपने करने की लिस्ट में, अपनी सावधानी की लिस्ट में ‘थिंक राइट’ को सबसे ऊपर रखें। हाथ को बार-बार साफ करना महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही मन को भी लगातार साफ रखना, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हाथ धोना तो आसान होता है। यह छोटे से बच्चे को भी सिखा देते हैं तो वो बच्चा आकर मम्मी-पापा को याद दिलाता है कि हाथ धोना है। मन को साफ रखना है ये हमें खुद को, घर वालों को और आसपास के सभी लोगों को बार-बार समझाना पड़ेगा। क्योंकि हमारे मन की स्थिति का असर किस-किस पर पड़ रहा है, हमारी हर सोच सबसे पहले हमारी भावनाओं पर असर करती है।
अगर हमने सोचा कि वायरस इतना फैल रहा है, आज 400 लोगों को हो गया। इस एक सूचना से हम अपने आसपास भय वाली परिस्थितियां बना रहे हैं। जैसी हमारी सोच होगी वैसा ही हमें महसूस होगा। हमें तो ये भी नहीं पता होता कि विचार हम ही पैदा कर रहे हैं। दूसरा हमारी हर सोच हमारे शरीर के एक-एक अंग पर जा रही है। मेडिकल साइंस भी कहता है कि हमारी हर सोच का प्रभाव हमारे शरीर की हर कोशिका पर पड़ता है। अब हमने बैठे-बैठे हजार प्रकार से सोच लिया। हमने सोचा कि हम किसी चीज से बच रहे हैं, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि हम कुछ और ही बीमारी खड़ी कर दें। अभी तो कोरोना को ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा और यह 100% जाएगा। हमारे शरीर में हमें नहीं पता कि कौन सा अंग कमजोर है। किसी का हाथ कमजोर है, किसी का निचला हिस्सा थोड़ा सा कमजोर है, किसी की रीढ़ थोड़ी सी कमजोर है। जब लगातार भय और चिंता की बातें होंगी तो शरीर के कमजोर अंग पर उसका असर पड़ जाएगा, क्योंकि हममें से बहुत लोगों की बीमारियां बॉर्डर लाइन पर चल रही हैं। एक महीना अगर कोई डर में भी रहे तो ज्यादा नुकसान नहीं होगा। लेकिन, कोई बॉर्डर लाइन पर चलता हुआ एक महीना डर में रहे तो हमारे शरीर में इसे सहन करने की ताकत नहीं है। तीसरा, हमारी हर सोच लोगों तक पहुंच रही है। वायरस से बचने के लिए हम लोगों से दूर हो सकते हैं। जो हम सबने कर लिया है। लेकिन घर में बंद होने से हम किसी की सोच और तरंगों से बच नहीं सकते हैं। अगर कोई पड़ोस में भी डर और चिंता का वातावरण बना रहा है तो उसका तरंग प्रभाव हमारे घर के अंदर आ जाता है।
हमें यह याद रखना होगा कि घर में बैठे-बैठे जो मैं सोच रही हूं, उसका नुकसान सिर्फ मुझे ही नहीं हो रहा है, बल्कि घर में बैठे हुए सभी लोगों को हो रहा है। इसका नुकसान हमारे आस-पड़ोस में हो रहा है। इसका प्रभाव पूरे देश में, पूरी सृष्टि पर जा रहा है। जब हम मन में सोच रहे होते हैं तो हमें नहीं लगता कि किसी और को दिख भी रहा है। भय की परिस्थिति में हम ये सोच सकते हैं कि कहीं मुझे कुछ हो न जाए। हम यह तक सोच लेते हैं कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? हम ये तक सोच लेते हैं कि मेरे बच्चे आगे क्या करेंगे। मतलब कि भय की ऊर्जा को आप रोक नहीं सकते। अब हमें तुरंत ही अपने आपको बताना पड़ेगा कि हमारा भय कहां तक पहुंच रहा है। हम सबको पता है कि सामूहिक संचेतना का क्या प्रभाव होता है। जब सब लोग मिलकर प्रार्थना करते हैं, मेडिटेट करते हैं, अच्छा सोचते हैं तो हमारे जीवन में चमत्कार होते हैं। जब सब लोग मिलकर भय का वातावरण बनाएंगे तो आपदा आएगी। इसमें मेरा भी योगदान होगा। जब हम सोशल डिस्टेंसिंग कर रहे हैं तो साथ में इमोशनल करेक्शन भी बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे अपने मन का ध्यान रखना है, ताकि मेरे डर की वजह से किसी और के अंदर भय उत्पन्न न हो जाए।
हम क्यों अपने आपको 14 दिन क्वारेंटाइन कर रहे हैं? अगर हमें ये बीमारी है तो हमें लोगों से दूर हो जाना चाहिए। ताकि मेरी वजह से किसी और को न हो जाए। लेकिन, क्वारेंटाइन मन के अंदर भी होना चाहिए कि मेरे डर की वजह से किसी के अंदर डर उत्पन्न नहीं होना चाहिए। उसके लिए हमें अपने आपको मन के अंदर जांचना होगा। उसके लिए हम किसी से दूर नहीं जा सकते। लेकिन, सबके बीच बैठे हुए ही सोचना पड़ेगा।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)