Ujjain, 27 Nov. : Renowned spiritual teacher Brahmakumari Shivani conducted a meditation session at Ksheer Sagar stadium here on Sunday morning. Addressing the event organised by the Prajapita Brahmakumari Ishwariy Vishwa Vidyalay on the topic,” Rajyog : The basis of internal peace, strength and happiness”. B K Shivani asked the gathering to keep silence for two minutes and introspect themselves. She said that people from all over the world reach Ujjain to get peace and vibration from the Mahakal Jyotirlingam. “One can easily know the nature of Ujjainites as they live in a peaceful city, but what would you understand about a city which is famous for carpet,” she quipped.
Referring to Swachh Bharat Mission, she said that it was good to make the city number one in cleanliness, but more important was to make the city peaceful and keep mind clean. If mind remains clean and calm, the city will automatically become number one in cleanliness, she said. Earlier, B K Shivani was given a warm welcome on her arrival from Indore. B K Usha delivered the welcome address and the guests inaugurated the program by lighting the traditional lamp.
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- दीया शब्द का अर्थ है जो देता है, जिसने दिया। जो आत्मा, जो व्यक्ति देता है या देने वाला होता है, वह शुभ होता है।
- हर व्यक्ति एक दीये के समान है, जो प्यार, सम्मान और विष्वास देता है। देवी-देवता इसीलिए पूजनीय होते है क्योंकि वे देने वाले हैं।
- सूर्य, जल, गाय और पेड़-पौधे पूजे जाते है। जो देगा वो पूजनीय। मनुष्य की संस्कृति भी देने की है।
- हम लोगों को प्यार, सुख, सम्मान और षांति देना शुरू करेंगे तो अच्छे विचारों का दीप जलेगा।
- जब दीया बुझता है तो उसे अषुभ माना जाता है, हम तुरंत उसमें घी डाल देते हैं। हमारा दीप जब बुझने लगे तो ज्ञान का घी उसमें तुरंत डालें।
- अगर मन स्वच्छ नहीं तो बाहर स्वच्छ नहीं बन सकता। पहले मन को स्वच्छ बनाना होगा।
- बाहर का जो कूडा-कचना दिखता है, उसे ता उठाकर फेंक सकते हैं लेकिन मन का जो कूड़ा-कचना दिखता नहीं, उसे कैसे फेंकेंगे।
- गुस्सा, नाराजी, नफरत की भावना, ये ऐसे कचरे हैं जो दिखते नहीं। मन को कंट्रोल कर इनको साफ करना पड़ेगा।
- जैसा संस्कार, वैसी संस्कृति और जैसी संस्कृति वैसा बाहर और संसार बनेगा।
- न दिखने वाले कूडे को साफ करने के लिए रोज मेडिटेषन करें, चेक करें कि कौन से विचार चल रहे है। इनको दूर करने का संकल्प लें।
- किचन, रसोई घर ऐसी पवित्र जगह है जहां से पूरे घर में पॉजीटिव एनर्जी पहुंचाई जा सकती है।
- घर के खाने में प्यार होता है, सात्विक भाव होता है। रेस्टोरंेट और होटल के खाने की वाइब्रेषन अलग होती है।
- होटल व रेस्टोरंेट वाले इस भाव से खाना बनाते हैं कि उन्हें पैसा मिले, धन मिले। यही विचार खाने वाले के मन में भी आता है।
- घर में खाना बनाते समय यह विचार करें कि हम सब स्नेह से रहें, मेरा घर स्वर्ग है, बच्चे अच्छी पढ़ाई करें, शरीर नीरोगी हो।
- जैसा अन्न खाएंगे वैसा मन बनेगा। टीवी ऑन करके, अखबार पढ़ते खाना खाएंगे तो वैसे ही विचार हमारे मन में आएंगे।
- हमें गुस्सा इसलिए आता है क्योंकि जब घर-परिवार के लोग हमारे अनुसार नहीं चलते।
- गुस्सा हमारा स्वभाव नहीं, बीमारी है। इसे ठीक करना होगा नही तो यह बढ़ता ही जाएगा और हमारा स्वभाव बन जाएगा।
- हर व्यक्ति का संस्कार और व्यवहार अलग होता है। किसी को डांटने या गलती के लिए बार-बार टोकने से वह नहीं सुधरतंे।
- हरेक चाहता है। कि दूसरा उसे समझे, यानी शांति दे। जब दोनांे एक-दूसरे ये यह अपेक्षा रखेंगे तो क्या रिजल्ट आएगा। छोटी-छोटी बातों से ही जीवन में तनाव आता है।
- संस्कार बदलने के लिए राय नहीं दें, प्यार और स्वयं के सुधार से ये बदलते हैं। रोज संकल्प करें कि में खुद एक शांत आत्मा हूॅं।
- उज्जैन शहर में कोई तामसिक भोजन खाते हैं ? कैसे खा सकते हैं, ये तो सात्विक नगरी हैं।
- जब एक जीव मारा जाता है तो उसमें नफरत की वाइब्रषन आती है और जब प्लेट में आता है तो कहते हैं प्रोटीन हैं।
- जब किसी का देहांत हो जाता है तो हमारे घर में भोजन नहीं बनता और किचन में, फ्रिज में किसकी बॉडी रहती है? श्मशान के नजदीक घर नहीं लेते और भोजन तामसिक, कैसे संभव घ्
- सुबह उठकर रोज अपने मन को सकारात्मक विचारों से भरों। इससे मोबाइल की तरह शरीर की बैटरी दिनभर चार्ज रहेगी नही ंतो दूसरों का फोन मांगकर काम चलाना पड़ेगा।