Mt Abu: An All India Jurists Conference on ‘Role of Jurists in Assuring the Dignity, Unity and Integrity of the Nation through Spirituality‘ was inaugurated at the Harmony Auditorium of Gyansarovar Academy here organized by the Jurist wing of Rajyoga Education and Research Foundation of Brahma Kumaris.
Justice Pinaki Chandra Ghose, First Lokpal of India, as the Chief Guest, extended his good wishes and thanked everyone for the invitation. He said that envy leads to anger, which further leads to crime. Spirituality can help counter this crime in society.
Deputy Lokayukta Justice U. C. Maheshwari said that the aim of human life is to live in peace and harmony.
Mr. Umesh Katiyar, Director of Income Tax Vigilance Department talked about spirituality being essential for growth of human consciousness.
Justice V. Eshwariah, Former Chairman of National Commission of Backward Classes said that religion and spirituality are separate. Spirituality helps us understand who we are. Self knowledge translates into right conduct and a just society.
BK Brijmohan, Additional Secretary General of Brahma Kumaris, said that the aim of this conference is very high and calls for dedicated efforts. Considering the plight of humanity these days , safeguarding the interests of the Nation is a challenging task. We must introspect upon the root cause of all human degradation. In spite of many religious centers and books , social values are in the decline. In this scenario, the jurists must convince the government that spirituality is the right way. Being soul conscious will get rid us of all weaknesses.
BK Santosh , In charge of the Maharashtra Zone of Brahma Kumaris also expressed her good wishes for this initiative. She said that comparison with others leads to envy. Being content keeps envy and disturbances away. Positive thinking alone can make pleasant humans. And good people will automatically uphold the pride of their nation.
BK BL Maheshwari, Chairperson of the Jurists Wing, presided over the function. She underlined the need for everyone to learn and propagate ‘The rule of Spirituality.
BK Pushpa, Vice-Chairperson of Jurists wing made everyone experience Rajayoga meditation.
Justice A. C. Puchhpure shed light on the importance of value education in maintaining social harmony. Mr. Ajay Kumar Shrivastava, former judge of Allahabad High Court said that if each individual does its duty, a lot of change can be brought in the society. BK Lata and BK Rashmi Ojha, National Co-ordinators of Jurists wing also addressed the gathering.
News in Hindi:
माउंट आबू : ज्ञान सरोवर स्थित हार्मनी हॉल में ब्रह्माकुमारीज एवं आर ई आर एफ की भगिनी संस्था, ”न्यायिवद प्रभाग” के संयुक्त तत्वावधान में एक अखिल भारतीय न्यायविद सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का विषय था ”अध्यात्म के आधार पर राष्ट्रीय गौरव, एकता और सत्यनिष्ठा को अक्षुण्ण रखने में न्यायमूर्तियों की भूमिका“. दीप प्रज्वलन के द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन सम्पन्न हुआ।
भारत के प्रथम लोकपाल न्यायविद पी सी घोष ने आज मुख्य अतिथि के रूप में अपनी बातें कहीं।कहा कि मैं आयोजकों को धन्यवाद देना चाहूंगा की आपने इस कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए मुझे आमंत्रित किया। आपने बताया की ईर्ष्या हर समस्याओं की जड़ है। इससे ही क्रोध की उत्पत्ति होती है। ईर्ष्या को अगर आप समाप्त कर सकें तो समस्याओं का समाधान का सकेंगे। आध्यात्म हमें ईर्ष्या मुक्त होने में मदद देगा।
उप लोकपाल, भोपाल न्यायमूर्ति यू सी माहेश्वरी ने आज अपनी बातें रखीं। आपने कहा की मानव जीवन का उद्देश्य आखिर है क्या ? मानव जीवन का उद्देश्य है आपस में प्रेम और भाईचारा कायम रखना। मानव बुद्धिमान है। बुद्धि को विवेकशील दिशा में लेकर जाना ही उत्तम है।
संस्थान के अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बृजमोहन भाई ने आज का अपना मुख्य व्याख्यान दिया। आपने कहा कि हमारे इस सम्मेलन का लक्ष्य काफी ऊंचा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काफी कुछ करना की जरूरत होगी। किसी राष्ट्र की गरिमा की संरक्षा एक बड़ी बात है। आज के मनुष्यों का क्या हाल हो चुका है यह तो हम जानते ही हैं। ऐसी स्थिति में गरिमा को कैसे बना कर रख सकते हैं ? इसके लिए यह जानना होगा की इन सभी बुराइओं की जड़ क्या है?
भगवान् ने गीता में बताया हैकि सभी बुराईयों की जड़ में है काम विकार। काम विकार के और भी छोटे भाई हैं – क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। हमारा समाज आज पूरी तरह इनके चंगुल में है। किसी ने भी समाज को इनसे मुक्त करने की प्रतिज्ञा नहीं की है। फिर राष्ट्र की गरिमा कैसे बचेगी ?
आज हमारे समाज में मंदिर,मस्जिद, गुरूद्वारे सभी हैं, शाश्त्र आदि हैं मगर फिर भी पतन है। अब लोग किधर देखें ? अतः न्यायविदों से प्रार्थना है की वे सरकारों को सलाह दें की इन बीमारियों से मुक्ति का सही मार्ग आध्यात्म है जिसका अध्ययन और धारणा की जानी चाहिए। आध्यात्म हमें बताता है की सारी बुराईयों की जड़ है देह अभिमान। हम सभी देह नहीं – उसके संचालक आत्मा हैं। आत्मा अनुभूति से ही हम सभी इन बुराईयों से मुक्त हो पाएंगे।
महाराष्ट्र जोन की संचालिका राजयोगिनी संतोष दीदी ने अपना आशीर्वचन इन शब्दों में दिया। आपने कहा की अपनी तुलना अन्य लोगों से करने के कारण ईर्ष्या का जन्म होता है। सन्तुष्टता की भावना मन में लाने से ईर्ष्या का शमन होता है। अगर हम अपनी भूमिका से संतुष्ट हैं, इस संसार में तो हम ईर्ष्या से मुक्त रह सकते हैं। कहा है की जो जैसा सोचता है वह वैसा ही बन जाता है, तो इसके लिए हमें अपनी वैचारिक प्रक्रिया को बदलने के जरूरत है। जब हम खुद को देह के बदले आत्मा समझ लेते हैं तब मन में संतोष का प्रादुर्भाव होता है। हम ईर्ष्या भाव से मुक्त होकर, आत्मिक अनुभूति के आधार पर अपनी और राष्ट्र की गरिमा बना कर रख पाते हैं।
न्यायविद प्रभाग के अध्यक्ष बी के माहेश्वरी जी ने कार्य क्रम की अध्यक्षता की.आपने कहा कि हमने यहां अनेक बातें सुनी। उन सुनी हुई बातों को जीवन में धारण करके गरिमा, सत्य निष्ठां और एकता धारण कर पाएंगे। जुरिस्ट्स को एक महान कार्य के लिए आगे आना होगा। हम सभी को अब रूल ऑफ़ स्पिरिचुअलिटी को सीखना और सिखाना होगा।
उमेश कटियार, निदेशक, आय कर प्रभाग विजिलेंस, ने भी उक्त अवसर पर अपनी बातें कहीं। आपने जीवन के उत्थान के लिए आध्यात्म को अनिवार्य बताया। आध्यात्म खुद के आचरण को ठीक रखने के लिए मददगार होता है।
पूर्व न्यायमूर्ति वी ईश्वरैया आंध्र हाई कोर्ट ने भी अपनी बातें कहीं। आध्यात्म, धर्म से अलग है। आध्यात्म खुद के बारे में सिखाता है। हम जब स्वयं को जान लेते हैं तो गरिमा, एकता और सत्य निष्ठां का जीवन बिता सकते है। ऐसे इंसान ही राष्ट्र की गरिमा को भी संभाल सकते हैं।
न्यायमूर्ति एएस पच्चपुरे ने भी अपनी बातें रखीं। आपने बताया की जब तक हम खुद को नहीं जानते – हम ये भी नहीं जान पाएंगे की दूसरे व्यक्ति क्या हैं ? खुद की पहचान के लिए आध्यात्म अनिवार्य है। यही हमें इन बातों के बारे में बताता है। अपनी पहचान समझ लेने के बाद हम राष्ट्र की एकता, गरिमा और सत्यनिष्ठा की रक्षा कर पाते हैं। आपने अपने जीवन की एक घटना का जिक्र किया और कहा के कैसे एक बार उन्होंने एक बलात्कारी को, मूल्यों की रक्षा के लिए, दण्डित किया था जबकि कानूनन वहाँ वैसा करने में कठिनाई थी। आपने मूल्यों को सर्वोच्च बताया और धारण करने की बात कही।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति ( पूर्व ) अजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा की मेरा मत है कि एक एकाकी व्यक्ति भी बड़ा बदलाव ला सकता है। वह एक इकाई है। अगर वह अपना कार्य निष्ठा पूर्वक कर रहा है तो वह राष्ट्र की गरिमा, एकता और उसकी सत्य निष्ठा बचा कर रख सकता है।
न्यायविद प्रभाग की उपाधक्षा राजयोगिनी बी के पुष्पा ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया। बी के डॉक्टर रश्मि ओझा, राष्ट्रीय संयोजक,न्यायविद प्रभाग ने स्वर्गीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मूल्यों से सम्बंधित कथा सुनाई। न्यायविद प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका ब्रह्माकुमारी लता बहन ने पधारे हुए अतिथियों का स्वागत किया।
न्यायमूर्ति वी डी राठी ने मंच का सुन्दर संचालन किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में ही ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के महासचिव राजयोगी निर्वैर भाई का सन्देश इस सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया।