Know the Secrets to Live Right, Think Right, Creating Right Karmas Always” by BK Shivani Didi Ji

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Lucknow (UP) : “Know the Secrets to Live Right, Think Right, Creating Right Karmas Always” विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी जी ने जी० डी० गोयनका पब्लिक  स्कूल के ऑडिटोरियम में उपस्थित सम्मानित अतिथिगणों एवं दर्शकों के मध्य अपना वक्तव्य दिया।  भ्राता जितेंद्र कुमार गुप्ता जी, आई०ए०एस०, भ्राता अविनाश चंद्रा, डी०जी०, फायर, भ्राता पाठक जी, जिला जज  एवं भ्राता गोयनका जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ सम्मानित अतिथिगणों द्वारा द्वीप प्रज्वलित करके एवं जी० डी० गोयनका पब्लिक  स्कूल के बच्चों ने कबीर के दोहों पर मनोहर नृत्य प्रस्तुति करके किया गया।  ब्रह्माकुमारी राधा दीदी जी ने  सभी आगंतुकों एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया।  अपने उद्बोधन में उन्होंने आध्यात्मिकता केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न रहकर व्यावहारिकता का अंग बन सके, इस पर जोर दिया।  

ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी जी ने कहा कि आध्यात्मिकता जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है, आध्यात्मिकता एक ऐसा लाइफ स्किल है जिसके सीखने से हम दैनिक कार्य करते हुए भी, एक सही सोच और सही कार्य विधि से जीवन में खुशियां प्राप्त कर सकते हैं।  परिस्थितियों से ज्यादा शक्तिशाली स्व-स्थिति होती है।  हम स्वयं को शक्तिशाली बनकर किसी भी बाह्य स्थिति या व्यक्ति का सामना बड़े ही सहज भाव से कर सकते हैं। आज के समाज की तस्वीर खींचते हुए बताया कि तनाव होना तो अब बीते जमाने की बात होती जा रही है, आजकल तो बच्चे भी अवसाद का शिकार होते जा रहे हैं, और इसके कारणों के ऊपर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया बच्चों की इस स्थिति के  ज्यादा जिम्मेदार अभिभावक हैं क्योंकि वह बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना, मजबूत आंतरिक स्व-स्थिति से कैसा किया जाता है,  इसका अपने जीवन से व्यावहारिक अनुभव नहीं दे पा रहे हैं।  उनको केवल कड़ी शिक्षाएं देने से यह शक्ति उनके अंदर जागृत नहीं की जा सकती है।  जरूरत है कि हम स्वयं के संस्कारों में परिवर्तन करें तो हमारे संस्कारों को देखकर हमारे बच्चे तो स्वतः  ही परिवर्तित होने लगते हैं।  

जब तक हम स्वयं की आत्मिक शक्ति को जागृत करके मानसिक रूप से सशक्त नहीं बनते हैं, हमारी आने वाली पीढ़ी भी शक्तिशाली नहीं हो पाएगी।  हमारी आंतरिक खुशी पढाई में ज्यादा नंबरों या बाह्य साधनों पर निर्भर नहीं होती है बल्कि एक शक्तिशाली मानसिक स्थिति पर होती है।  हमें व्यक्तियों, परिस्थितियों, साधनों से मुक्त, खुशी के संस्कार को जीवन में धारण करना सीखना होगा।  कार्यक्रम के अंत में उन्होंने  उपस्थित जनों को राजयोग का अभ्यास कराके समापन किया। 

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