गीता ज्ञानामृत द्वारा स्वर्णिम भारत का निर्माण विषय पर संत समागम का उद्घाटन समारोह
आबू रोड, 25 मार्च, (निप्र)। गीता ज्ञानामृत द्वारा स्वर्णिम भारत का निर्माण विषय पर आयोजित संत समागम का आगाज हो गया। इस संत सम्मेलन में देशभर से नामचीन संत एवं महात्मा शामिल हुए। उदघाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए श्रीराम शक्तिपीठ संस्थान पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मौजूदा दौर में अध्यात्म ही है जो मनुष्य को सही राह दिखा सकता है। सभी धर्मों की शिक्षाएं लोगों को एकमत रहना सीखाती है। कभी भी दूसरे धर्मों का अपमान नहीं करना चाहिए। ब्रह्माकुमारीज संस्थान का ज्ञान मानवता को स्थापित करता है। वे संत समागम के उदघाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति अपनी असली संस्कृति है। देवी देवताओं जैसा ही मानव का स्वभाव होना चाहिए। इससे मानव समाज देव तुल्य हो जायेगा। ब्रह्माकुमारीज संस्थान का प्रयास जरूर एक दिन रंग लायेगा। नारी शक्ति का यहॉं अनुपम उदाहरण देखने को मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति अपनी असली संस्कृति है। देवी देवताओं जैसा ही मानव का स्वभाव होना चाहिए। इससे मानव समाज देव तुल्य हो जायेगा। ब्रह्माकुमारीज संस्थान का प्रयास जरूर एक दिन रंग लायेगा। नारी शक्ति का यहॉं अनुपम उदाहरण देखने को मिल रहा है।
ब्रह्माकुमारीज संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी ने कहा कि हम सब एक परमात्मा के बच्चे है। इसलिए समस्त मानव समाज को अपने और परमात्मा के परिचय से जीवन में आदर्श मूल्यों को अपनाते हुए स्वयं को श्रेष्ठ बनाना चाहिए। वर्तमान समय कलियुग का अंत और सतयुग के आदि का समय है। इसलिए आने वाला समय बहुत महत्वपूर्ण है।
इस सत्र में गीता ज्ञानमृत द्वारा स्वर्णिम भारत के निर्माण में राजयोग का महत्व विषय पर चर्चा हुई..दिल्ली से आए विश्व अहिंसा परिषद के अध्यक्ष आचार्य डॉ लोकेश मुनी ने कहा कि आज के समय में हर किसी को ध्यान, मेडिटेशन, आयुर्वेेद की बहुत जरुरत है। ये संस्था मानवता का संदेश दे रही है। इस अवसर पर द्वारका जूना अखाड़ा के मुंबई से आए जगदगुरू सूर्याचार्य स्वामी कृष्णदेवानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज की मुरली जीवन जीने की कला सिखाती है। मधुबन से मुरली हर घर में जानी चाहिए। श्री पंचायती उदासीन नया अखाड़ा हरिद्वार से आए स्वामी धर्मदेव जी महाराज ने मधुबन की महिमा करते हुए कहा कि यहां से ही वैकुंठ का रास्ता तय होगा। उन्होंने कहा कि ये जो राजयोगी या राजयोगिनी कहलाते हैं वे हीरे हैं। इनके माध्यम से ही पूरे विश्व में परमात्मा का पैगाम पहुंच रहा है।
कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारीज संस्थान के महासचिव बीके निर्वैर ने कहा कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है। इसको बनाये रखने के लिए जीवन में ध्यान और रायजोग को अपनाना चाहिए। जयपुर की सबजोन प्रभारी बीके सुषमा ने राजयोग के बारे में विस्तृत वर्णन करते हुए थोड़े समय के लिए ईश्वरानुभूति करायी। इस संत समागम में श्री पंचायती उदासीन अखाड़ा पटौदी, श्रीमत जगदगुरू विश्वकर्मा महासंस्थान सावित्री पीठ काशीमठ कर्नाटक के अष्टोत्तर शता श्री शंकराचार्य सोमेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज समेत देश के कई नामचीन संतों ने अपने अपने विचार व्यक्त किये।
संतों का हुआ सम्मान: संत समागम में आये संतों को मोमेंटों भेंटकर उन्हें सम्मानित किया गया। इसके साथ ही उन्हें माला और साफा पहनाकर उन्हें ईश्वरीय सौगात दी गयी।
सांस्कृति संध्या में कलाकारों ने बाधा समा: कार्यक्रम के दौरान अलग अलग स्थानों से आये कलाकारों ने समा बांध दिया।फोटो, 26एबीआरओपी 1, 2, 3, 4 कार्यक्रम का उदघाटन करते संत महात्मा तथा अन्य अतिथि, सभा में उपस्थित लोग, संतों को सम्मानित करती दीदी।